Wednesday, August 1, 2018

सुनो, अब लौट कर मत आना.....


सुनो, अब वापिस मत आना, अब हम संभल गए हैं।
दिल की धड़कनें अब तुम्हारे नाम से तेज़ नहीं होतीं,
और तो और, तुम्हारी पसंद भी भूलने लगी हूँ।
याद ही नहीं कि तुम्हें आइसक्रीम का,
कौन सा फ़्लेवर पसंद था।
या फिर कौन सा रंग, कौन सा ब्राण्ड।
तुम्हारे नाम को गूगल करना भी बंद कर दिया है,
और वो चैट्स भी नहीं हैं अब मेरे फ़ोन में।
तुम्हारी पसंदीदाटिक-टैकभी अब मेरे पर्स में नहीं रहती।
तुम्हारे फ़ोटो के स्क्रीनशॉट्स भी लेने बंद कर दिए हैं।
अब जो ये चमत्कार हो ही गया है तो सोचा बता दूँ,
कि अब तुम लौट कर मत आना,

हम भी संभल गए हैं और दिल भी।

Saturday, July 28, 2018

That’s how we meet now!


He drops an email- Where are you?
Me- In your heart!
Him- Stop being cheesy and tell me.
Me- 28.7041° N, 77.1025° E
Him- Damn! I like it..keep rolling!
Me-Stop it. If you are there, send in your location.

And we meet.
Over ccd, over golgappa, over tea, over lavish lunch/dinner in a 5 star, over street food, over starbucks, over madras cafe, whatever is possible.

And we talk.
About life, global scenarios, politics, work, studies, education, socio-political issues, governance, economic situation of our country, administration, blogs, poetries, books, authors, FIFA, Hockey, happiness, family, friends, memories, moments, ISRO, PSLV, GSLV, Startups, Core industries, Geopolitical situations etc.


We make fun of each other, hug and depart.

Friday, July 27, 2018

क्या इसे प्यार कहा जा सकता है?


क्या व्हाट्सऐप पे उनके,
ऑनलाइन आने पर मेरा ख़ुश हो जाना,
प्यार कहा जा सकता है?

क्या मेरे मेसेज़ पर,
उनका तुरंत रिप्लाई आने का एक़्साइटमेंट,
प्यार कहा जा सकता है?

क्या अचानक उनका फ़ोन आने पर,
मेरा सब कुछ छोड़ कर वो कॉल लेना,
प्यार कहा जा सकता है?

क्या उनके नाराज़ होने पर,
उनके सारे ग़ुस्से को बिना मेरी ग़लती के सहना,
प्यार कहा जा सकता है?

क्या उन्हें परेशान देख कर,
मेरे दिल का यूँ बैठ जाना,
प्यार कहा जा सकता है?

क्या उनसे की हुई चैट को,
रात के 2 बजे बार बार पढ़ना,
प्यार कहा जा सकता है?

क्या उनके फ़ेसबुक और इंस्टा पे,
उनकी हर फ़ोटो को देर तक देखना,
प्यार कहा जा सकता है?

Wednesday, July 25, 2018

हाँ यही तो प्यार है.....


जानते हो कितनी बार ऐसा हुआ है,
कि मैंने तुम्हारा नम्बर अपनी फ़ोन स्क्रीन पे देखा,
पर डायल नहीं किया।
बस वो है मेरे फ़ोन में, यही देख कर ख़ुश हो जाती हूँ।
यही प्यार है, हाँ यही तो प्यार है।

तुम्हारे इश्क़ ने वो हाल कर दिया है,
कि तुम्हारा नाम, तुम्हारी पसंदीदा चीज़ें,
कहीं देखती हूँ तो मुस्कान जाती है चेहरे पर,
यही प्यार है, हाँ यही तो प्यार है।

तुम्हारे साथ जहाँ चाय पी थी
जहाँ गोलगप्पे खाए थे,
उधर का रूख़ नहीं किया दोबारा अभी तक।
यही प्यार है, हाँ यही तो प्यार है।

तुम्हारे साथ जिए हुए एक एक लम्हे को,
फिर से हज़ार बार जिया है मैंने,
इस क़दर कि वो लम्हा मेरी धड़कन में बस जाए।
यही प्यार है, हाँ यही तो प्यार है।

तुम्हारी पसंद, नापसंद ज़बानी याद है मुझे,
करेले नहीं खाते हो तुम,
फिर उस दिन मेरे कहने पर क्यूँ खा लिये थे तुमने?
यही प्यार है, हाँ यही तो प्यार है।

तुम्हारी तस्वीरें मेरे फ़ोन में,
मेरी ख़ुद की तस्वीरों से ज़्यादा हैं,
और ज़हन में तुम्हारी बातें, यादें और चेहरा।
यही प्यार है, हाँ यही तो प्यार है।




Tuesday, July 10, 2018

पिघल जाता हूँ मैं....

याद आती है मेरी?
बोलो....चुप क्यूँ हो?
अच्छा रहने दो....आज तुम सुनो।
और डबडबायी आँखों से मत देखा करो,
पिघल जाता हूँ मैं।
तो तुमने फ़ैसला कर लिया?
देखो, अगर जवाब ना देना हो,
तो आँखें झुका लेना।
सच पढ़ लेता हूँ मैं इनमें।
मेरी तरफ़ देखोगी तो झूठ पकड़ जाएगा,
और मैं तुम्हें झूठा नहीं होने दूँगा।
इसलिए नज़रें झुका लेना, मैं समझ जाऊँगा।
हाँ, तो फ़ैसला कर लिया जाने का?
मुझे तो छोड़ ही दिया, क्या यादों को भी भुला दिया?
दो लोगों को हाथ पकड़े हुए देख कर,
तुम्हें याद आती है मेरी?
सुनो, रोना नहीं, मैं ज़्यादा सवाल नहीं पूछूँगा।
और....घर पे बताया किसी को?
या मेरा कोई ज़िक्र ही नहीं है?
अच्छा छोड़ो...तुम ठीक हो?
नहीं, हाथ मत पकड़ो मेरा,
तुम्हारी छुअन को गहरा महसूस करता हूँ,
धड़कनों का हाल जान जाऊँगा,
हाँ, हाथ मत पकड़ो मेरा।
तो आज सिर्फ़ रोओगी?
कुछ कहे बिना ही चली जाओगी?
नहीं, डबडबायी आँखों से मत देखो।
पिघल जाता हूँ मैं....


Tuesday, June 12, 2018

तुम मुझे बहुत अधूरा सा छोड़ गए....


तुम मुझे बहुत बेक़रार, बहुत अधूरा सा छोड़ गए,
तुम मिले थे मुझसे पहली दफ़ा जब,
तो एक ख़ालीपन था तुम में,
वो ख़ालीपन तुमने भर लिया मुझसे,
और मुझे ख़्वाबीदा नींद में छोड़ गए,
तुम मुझे बहुत बेक़रार, बहुत अधूरा सा छोड़ गए

लम्हे कई गुज़ारे हमने साथ में यूँ तो,
बातें बयान की थी जहाँ भर की साथ में,
उन तमाम यादों की भारी गठरी,
तुम मेरी अल्मारी में ख़ुद ही रख गए,
तुम मुझे बहुत बेक़रार, बहुत अधूरा सा छोड़ गए

बेबाक़ी का जो आलम था,
मुझसे मुलाक़ात करने पर,
उस दिन मुख़ातिब होके मुझसे,
दो अल्फ़ाज़ भी ना कह सके,
तुम मुझे बहुत बेक़रार, बहुत अधूरा सा छोड़ गए

नहीं है इंतज़ार मुझे तेरे आने का,
ना ही कोई ग़िला है तेरी बेरुख़ी से,
जो कुछ भी मुझमें बाकी था,
सब कुछ, तुम साथ ले गए,
तुम मुझे बहुत बेक़रार, बहुत अधूरा सा छोड़ गए

मेरी जीस्त का वो ख़ुशनुमा पल,
तुमने ही दिया था मुझे आग़ोश में भर कर,
जाओ तुम्हें उस पल के बदले,
ख़्वाब उम्र भर के दे दिए,
मगर फिर भी इतना तो कहूँगी,

कि तुम मुझे बहुत बेक़रार, बहुत अधूरा सा छोड़ गए।